Rabindranath Tagore Biography in Hindi: आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के प्रथम “नोबेल पुरस्कार” विजेता जिन्होंने बांग्ला साहित्य से भारतीय कल्चरल में नयी जान फूँक दी!
जी हां मैं बात कर रहा हूं गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर जी के बारे में जो विश्व के एकमात्र ऐसे कवि थे जिनकी दो रचनाएँ, दो देशो का राष्ट्रगान बनी। भारत का राष्ट्रगान जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला ’ इन्ही की रचनाएं है !
ऐसे महान कवि के जीवन के बारे में और विस्तार से जानने के लिए हमारे आर्टिकल Rabindranath Tagore biography in Hindi को पूरा पढ़े…!
रबिन्द्रनाथ टैगोर जी के बारे में पूरी जानकारी
रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत के महान प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। वे महान साहित्यकार, समाज सुधारक, अध्यापक, कलाकार एवं संस्थाओं के निर्माता थे जिन्होंने अपने सपनों को साकार करने के लिए लगातार काम किया। उनकी सफलताओं से भारतीयों में आत्मसम्मान का भाव आया। उनके विशाल व्यक्तित्व को राष्ट्र की सीमांए बांध नहीं पायी। वे एक विश्व नागरिक थे।
वास्तविक नाम | रवीन्द्रनाथ टैगोर |
पेशा | साहित्यकार, समाज सुधारक, अध्यापक, कलाकार |
जन्म की तारीख | 7 मई 1861 |
मृत्यु | 7 अगस्त 1941 ( 80 वर्ष ) |
जन्मस्थल | कोलकाता |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिंदू |
पत्नी | मृणालिनी देवी |
बच्चे | रथीन्द्रनाथ टैगोर, शमिन्द्रनाथ टैगोर, रेणुका देवी, मीरा देवी, मधुरिलता देवी |
पिता | श्री देवेन्द्रनाथ टैगोर |
माता | श्रीमति शारदा देवी |
रबिन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म और उनका प्रारंभिक जीवन
टैगोर जी का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था, जो ब्रह्म समाज के सीनियर नेता और एक साधारण जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। टैगोर जी की माता का नाम शारदा देवी था। वह एक धार्मिक महिला थीं। रवींद्रनाथ टैगोर परिवार के 13 बच्चों में सबसे छोटे थे। बचपन में ही टैगोर की मां का देहांत हो गया था। जिस वजह से उनका पालन-पोषण नौकरों ने ही किया था।
रवीन्द्रनाथ ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने घर पर ही प्राप्त की। उन्हें स्कूली शिक्षा के लिए पास के एक स्कूल में भेजा गया था, पर स्कूल के वातावरण को वे सहन नहीं कर पाए, जिसके बाद उनके पिता ने घर पर ही उनकी पढ़ाई की पूरी व्यवस्था कर दी।
यही कारण है वह स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए इसके बावजूद उन्होंने अपने घर पर ही साहित्य, और संगीत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। बचपन में ही उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था ,बाद में अंग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त करने के लिए 17 वर्ष की आयु में लन्दन गए और लन्दन विश्वविद्यालय में उन्होंने एक वर्ष तक पढ़ाई किया।
रबिन्द्रनाथ टैगोर का साहित्यिक जीवन
उन्होंने पहली कविता आठ वर्ष के आयु में लिखी थी और सन् 1877 में केवल सोलह वर्ष की आयु में उनकी प्रथम लघुकथा प्रकाशित हुई थी। टैगोर जी ने अपने जीवन में कई उपन्यास, निबन्ध, लघु कथाएँ, नाटक और कई गाने भी लिखे है। वैसे वो अपनी कविताओं के लिए जाने जाते है।
लेकिन उनकी छोटी कहानियाँ बहुत लोकप्रिय रही है टैगोर ने इतिहास, भाषाविज्ञान और स्पिरिचुअलिटी से जुड़ी पुस्तकें भी लिखी थी। 2011 में, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने विश्व भारती – के साथ अग्रेजी में उपलब्ध टैगोर के कार्यों की सबसे बड़ी संकलन “द एसेटियल टैगोर को पब्लिश करने के लिए सहयोग किया है यह फकराल आलम और राधाचक्रवर्ती द्वारा एडिटेड की गई थी और टैगोर के जन्म की 150 वी वर्षगांठ की निशानी है।
रबिन्द्रनाथ टैगोर जी का करियर
ज्यादातर अपनी कविता के लिए जाने जाने वाले, टैगोर ने उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रा वृतांत, नाटक और हजारों गीत लिखे है, टैगोर के गद्य में, उनकी लघु कथाएँ शायद सबसे ज्यादा मानी जाती हैं।
नाटक
- वाल्मीकि प्रतिभा (1881) में टैगोर ने देवी लक्ष्मी के रूप में अपनी भतीजी इंदिरा देवी के साथ टॉपिक पर भूमिका निभाई।
- नाटक के साथ टैगोर के अनुभव तब शुरू हुए जब वे सोलह वर्ष के थे, अपने भाई ज्योतिरिंद्रनाथ के साथ।
- उन्होंने अपना पहला मौलिक नाटक तब लिखा जब वह बीस वर्ष के थे। बाल्मीकि प्रतिभा जिसे टैगोर की हवेली में दिखाया गया था।
- चित्रांगदा, चंडालिका और श्यामा अन्य प्रमुख नाटक हैं जिनमें नृत्य-नाटक रूपांतर किया गया हैं, जिन्हें एक साथ रवींद्र नृत्य नाट्य के रूप में जाना जाता है।
लघु कथाएँ
- टैगोर ने 1877 में लघु कथाओं में अपने करियर की शुरुआत की जब वह केवल सोलह वर्ष के थे “भिखारिनी” (“द बेगर वुमन”) इसके साथ टैगोर ने बांग्ला भाषा की लघु कथा शैली का आविष्कार किया।
- वहां उन्होंने भारत के गरीब और आम लोगों के जीवन को देखा, इसके बाद टैगोर ने उनके जीवन की गहनता और उस बिंदु तक भारतीय साहित्य में एकमात्र भावना के साथ जांच की।
- विशेष रूप से, “काबुलीवाला” (“द फ्रूटसेलर फ्रॉम काबुल, 1892 में प्रकाशित), “क्षुदिता पासन” (“द हंग्री स्टोन्स”) (अगस्त 1895), और “अतिथि” (“द रनवे” 1895) जैसी कहानियाँ को उन्होंने लिखी ।
उपन्यास
- टैगोर ने आठ उपन्यास लिखे, जिनमें चतुरंगा, शेशेर कोबिता, चार ओधय और नौकाडुबी शामिल हैं। हालांकि उनके उपन्यासों को उनके कार्यों की सबसे कम सराहना मिली है ।
कविता
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, गीतांजलि टैगोर का सबसे प्रसिद्ध कविता है, जिसके लिए उन्हें 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- टैगोर ने लगभग 2,230 गीत लिखे थे। उनके गीतों को रवीन्द्रसंगीत (“टैगोर सॉन्ग “) के रूप में जाना जाता है ।
- 1971 में, अमर सोनार बांग्ला बांग्लादेश का राष्ट्रगान बन गया। जन गण मन शाधु-भाषा में लिखा गया था, जो बंगाली का एक संस्कृत रूप है ।
- ब्रह्म भजन भरत भाग्य बिधाता के पांच छंदों में से पहला है जिसे टैगोर ने रचा था।
- जन गण मन को पहली बार 1911 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता सेशन में गाया गया ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तकें-
1. गीतांजलि (1910)
2. शेशेर कबिता (1929)
3. चोखेर बाली (1903)
4. डाकघर (1912)
5. मानसी (1890)
6. रचनात्मक एकता (1922)
7. वसंत का चक्र (1917)
8. भिखारिनी
9. भूखे पत्थर (1920)
10. साधना, जीवन का अहसास (1913)
11. राष्ट्रवाद (1917)
12. लघुकथाएँ
13. गीताबितान (1932)
14. मनुष्य का धर्म (1931)
15. द होम एंड द वर्ल्ड (1916)
16. गेला (1910)
17. आवारा पक्षी (1916)
18. माली (1913)
19. काबुलीवाला
20. गाने की पेशकश (1910)
21. द हंग्री स्टोन्स एंड अदर स्टोरीज़ (1916)
22. रवीन्द्रनाथ टैगोर की चुनिंदा कहानियां (2004)
23. द ब्रोकन नेस्ट (1901)
24. रवीन्द्रनाथ टैगोर एन एंथोलॉजी (1997)
25. रवीन्द्रनाथ टैगोर की चुनिंदा लघु कथाएँ (1917)
26. टैगोर की कहानियां (1918)
27. द एसेंशियल टैगोर (2011)
28. गमेरे लड़कपन के दिन
29. फलों का जमावड़ा (1916)
30. सोनार तोरी (1894)
31. बंगाल की झलक (1921)
32. मेरे संस्मरण (1912)
33. रवीन्द्रनाथ टैगोर की संपूर्ण कृतियाँ (सचित्र संस्करण)
34. रवीन्द्रनाथ टैगोर चयनित कविताएं और गीत (2006)
35. योगयोग (1929)
36. गल्पगुच्छा
37. मलबे (1926)
38. प्रेमी का उपहार और पार (1918)
39. वोकेशन (1909)
40. सहज पथ
41. चार अध्याय
42. भानुसिम्हा ठाकुरर पदबली (1884)
43. चतुरंगा
44. नौकाडुंबी (1906)
45. रवीन्द्रनाथ टैगोर अचलायतन
46. रेड ओलियंडर्स (1925)
47. रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं और नाटकों का संग्रह (1936)
48. दुई बीघा जमी
49. एल कार्टेरो डेल रे
50. घर आ रहा है
रबिन्द्रनाथ टैगोर के अवार्ड्स
- 14 नवंबर, 1913 को रवीन्द्रनाथ टैगोर को सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रय रचना ‘गीताजंलि’ के लिए साहित्य में ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उसके बाद वे पूरे विश्व में विख्यात हो गए।
- 20 दिसंबर, 1915 को कलकत्ता विश्वविद्यालय टैगोर जी को साहित्य के लिए ‘डॉक्टर’ की उपाधि से सम्मानित किया।
- टैगोर को 3 जून 1915 को ‘किंग जॉर्ज पंचम’ (ब्रिटेन) द्वारा ‘नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1919 में ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ के बाद उन्होंने इस उपाधि को त्याग दिया।
- 1940 में ‘ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी’ ने उन्हें शांतिनिकेतन में आयोजित एक विशेष समारोह के दौरान ‘डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर’ के साथ प्रस्तुत किया।
शांतिनिकेतन की स्थापना
रवींद्रनाथ टैगोर के पिता ने शांतिनिकेतन क्षेत्र में जमीन का एक बड़ा हिस्सा खरीदा था। रवींद्रनाथ टैगोर जी ने अपने पिता की संपत्ति को स्कूल में बदलने की सोची। उन्होंने यह काम 1901 में करना शुरू किया था।
रवींद्रनाथ टैगोर ने पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसे बाद में शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाने लगा। इसकी दो परिषदें हैं, एक शांतिनिकेतन है और दूसरी श्रीनिकेतन है। श्रीनिकेतन के अंदर एग्रीकल्चर, मैच्योर शिक्षा, ग्राम, कॉटेज इंडस्ट्री तथा हैंडीक्राफ्ट की शिक्षा प्रदान करने का कार्य किया जाता है।
रबिन्द्रनाथ टैगोर जी का विवाह
वर्ष 1883 में रवींद्रनाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ था। उस समय मृणालिनी देवी केवल 10 वर्ष की थी। रवींद्र नाथ टैगोर ने 8 साल की उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था और 16 साल की उम्र में उन्होंने भानु सिन्हा के छद्म नाम से कविताएं प्रकाशित करना भी शुरू कर दिया था। वर्ष 1871 में रवींद्र नाथ टैगोर के पिता ने उन्हें लंदन के लॉ कॉलेज में भर्ती करा दिया। लेकिन साहित्य में उनकी रुचि के कारण वे दो साल बाद बिना डिग्री प्राप्त किए भारत लौट आए।
रबिन्द्रनाथ टैगोर जी का भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में आवाज उठाई। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादियों का समर्थन किया और ब्रिटिश साम्राज्य की आलोचना की। उन्होंने भारतीयों पर जबदस्ती थोपी जा रही अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की भी आलोचना किया । उन्होंने ब्रिटिश शासन को भारतीय जनता की ‘सामाजिक बुराई’ करने वाला कहा तथा उन्होंने अपने लेखन में भारतीय राष्ट्रवादियों के पक्ष में आवाज उठाई।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बंगाल की जनता को एकजुट करने के लिए ‘बांग्लार माटी बांग्लार जोल’ गीत लिखा था। इसके अतिरिक्त उन्होंने जातिवाद के खिलाफ ‘राखी उत्सव’ का प्रारंभ किया, उनसे प्रेरित होकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग- बिरंगे धागे बांधे।
3 जून 1915 को रवीन्द्रनाथ टैगोर को ‘किंग जॉर्ज पंचम’ द्वारा ‘नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। जिसको उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड'(अमृतसर) के विरोध के रूप में त्याग दिया।
रबिन्द्रनाथ टैगोर जी का शिक्षा में योगदान
नोबेल पुरस्कार के रूप में प्राप्त धनराशि की सहायता से उन्होंने पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के बोलपुर में वर्ष 1921 में शान्ति निकेतन जिसे विश्वभारती विश्वविद्यालय भी कहा जाता है, की स्थापना की। वर्ष 1951 में भारत सरकार ने इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया। विदेशी दासता के चंगुल में फँसे देश की मुक्ति के लिए शिक्षा के क्षेत्र में जिस क्रान्ति की आवश्यकता थी, उस दृष्टि से यह उनका एक महानतम योगदान था ।
अपने जीवन के अन्तिम दिनों में उन्होंने चित्र बनाना भी शुरू किया था और अपने बनाए चित्रों से उन्हें एक चित्रकार के रूप में भी उन्हे दुनिया में ख्याति ( रेपुटेशन ) मिली। जब देश अपनी स्वतन्त्रता के लिए ब्रिटिश सरकार से संघर्ष कर रहा था, तब अपने से उन्होंने इस संघर्ष में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यही कारण है कि जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के बाद उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई नाइट (सर) की उपाधि लौटा दी थी।
रबिन्द्रनाथ टैगोर के इंटरेस्टिंग फैक्ट्स
- रवींद्रनाथ टैगोर प्रतिष्ठित विश्व भारती विश्वविद्यालय के संस्थापक थे।
- रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान की रचना की और श्रीलंका के राष्ट्रगान में योगदान दिया। वह दुनिया के एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्होंने एक से अधिक राष्ट्रों के राष्ट्रगान लिखे हैं।
- 1940 में इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में उनकी कई उपलब्धियों के लिए टैगोर को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
- रवींद्रनाथ टैगोर को अंग्रेजों ने वर्ष 1915 में नाइट की उपाधि से नवाजा था।
- 1930 में पेरिस और लंदन में रवींद्रनाथ टैगोर के चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई थी। वह यूरोप, रूस और संयुक्त राज्य भर में अपने काम का प्रदर्शन करने वाले पहले भारतीय कलाकार बने उनके द्वारा 102 कार्य भारत की आधुनिक कला की राष्ट्रीय गैलरी के संग्रह में सूचीबद्ध हैं।
- बर्मिंघम प्रवास के दौरान रवींद्रनाथ टैगोर ने ऑक्सफोर्ड लिखा था
- रवींद्रनाथ टैगोर जापान में डार्टिंगटन हॉल स्कूल के सह-संस्थापक थे।
- 1877 में, 16 साल की उम्र में, रवींद्रनाथ टैगोर ने भिखारिनी नामक एक लघु कहानी लिखी।
- रवींद्रनाथ टैगोर की सबसे प्रसिद्ध लघु कथाओं में काबुलीवाला शामिल हैं, जिसके आधार पर 1957 की एक बंगाली फिल्म और 1961 की एक हिंदी फिल्म बनाई गई थी।
- भारतीय डाक विभाग ने 7 मई 1961 को रवींद्रनाथ ठाकुर को अपनी श्रद्धांजलि दिखाई जब रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर एकडाक टिकट जारी किया गया।
- भारत सरकार, पश्चिम बंगाल सरकार और कई निजी फर्मों ने रवींद्रनाथ टैगोर के नाम पर दुनिया भर में संस्थान, स्वास्थ्य केंद्र और कई सेवा केंद्र खोलकर रवींद्रनाथ टैगोर के प्रति सम्मान दिखाया।
- रबीन्द्रनाथ टैगोर परम शिव उपासक थे | उन्होंने अनेक शिव मन्दिरों का जीर्णोध्दार कराया । वे अक्सर शिव भजन गुनगुनाया करते थे।
रबिन्द्रनाथ टैगोर के अनमोल विचार
- यदि आप सभी गलतियों के लिए दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जायेगा
- मंदिर की गंभीर उदासी से बाहर भागकर बच्चे धूल में बैठते हैं, भगवान् उन्हें खेलता देखते हैं और पुजारी को भूल जाते हैं।
- जो कुछ हमारा है वो हम तक आता है, यदि हम उसे ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं।”
- हर बच्चा इसी सन्देश के साथ आता है कि भगवान अभी तक मनुष्यों से हतोत्साहित नहीं हुआ है।
- वह मनुष्य बड़ा भाग्यवान है जिसकी कीर्ति उसकी सत्यता से अधिक प्रकाशमान नहीं है।
- ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब जाता है, लेकिन छोटे-छोटे फूलो से कभी रुष्ठ नहीं होता।
- आस्था वो पक्षी है, जो भोर के अँधेरे में भी उजाले को महसूस करती है।
- कुछ न कुछ कर बैठने को ही कर्तव्य नहीं कहा जा सकता, कोई समय ऐसा भी होता है, जब कुछ न करना ही सबसे बड़ा कर्तव्य माना जाता है।
- मैं सोया और स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है। मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने सेवा की और पाया कि सेवा आनंद है।
रबिन्द्रनाथ टैगोर की मृत्यु
रवीन्द्रनाथ ने साहित्य, संगीत, शिल्प, शिक्षा प्रत्येक क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। उनकी मृत्यु 7 अगस्त, 1941 को हुई। उनके निधन पर महात्मा गाँधी ने कहा था- “आज भारत के रवि का अस्त हो गया”, हालाँकि टैगोर और महात्मा गाँधी के बीच नेशनलिटी और ह्यूमैनिटी को लेकर हमेशा आइडियोलॉजिकल मतभेद रहा।
गाँधीजी नेशनलिज्म को प्रथम स्थान पर रखते थे, वहीं टैगोर ह्यूमैनिटी को नेशनलिज्म से ज्यादा महत्त्व देते थे। रबीन्द्रनाथ टैगोर के इन्ही महान कार्यो के कारण इन्हें “गुरुदेव” की उपाधि दी गयी |
Rabindranath Tagore Biography in Hindi – FAQ’s
-
रबीन्द्रनाथ का पूरा नाम क्या है?
रबीन्द्रनाथ का पूरा नाम गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर / ठाकुर है।
-
रबीन्द्रनाथ टैगोर के बचपन का नाम क्या था?
रबीन्द्रनाथ टैगोर के बचपन का नाम “रवी” था |
-
रबीन्द्रनाथ टैगोर का उपनाम क्या था?
रबीन्द्रनाथ टैगोर का उपनाम “गुरुदेव” है।
-
रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित प्रसिध्द पुस्तक का क्या नाम है ?
रबीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित प्रसिध्द पुस्तक का नाम गीतांजलि हैं।
-
रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रमुख कृतियाँ कौन कौन सी है ?
रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रमुख कृतियाँ गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिन, शिशु भोलानाथ चोखेरबाली, क्षणिका, कथा ओ कहानी आदि हैं ।
-
रबीन्द्रनाथ टैगोर को किस रचना पर नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ ?
रबीन्द्रनाथ टैगोर को गीतांजलि के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया।
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निष्कर्ष
दोस्तों Rabindranath Tagore biography in Hindi आर्टिकल को पढ़कर आपको गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर जी के बारे में सब कुछ पता चल गया होगा। गुरुदेव की जिंदगी से बहुत कुछ सीखने लायक है, उम्मीद है आप उन बातों को ध्यान में रखेंगे । अगर आपको आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर कीजिए।
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