Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi: एक महान भारतीय गणितज्ञ जिनकी गिनती आधुनिक समय के महानतम गणितज्ञों में की जाती है। वह रॉयल सोसाइटी के सदस्य बनने वाले दूसरे भारतीय और कैम्ब्रिज में ट्रिनिटी कॉलेज के सदस्य बनने वाले पहले भारतीय थे।
जी मैं बात कर रहा हूं, श्रीनिवास रामानुजन, जो अब तो इस संसार में नही है लेकिन वे अपने पीछे कई महान उपलब्धियाँ छोड़ गए है। उन्होंने अपनी प्रतिभा और लगन के दम पर गणित में अद्भुत आविष्कार किए और साथ ही पूरी दुनिया में भारत का नाम रौशन किया।
ऐसे महान व्यक्तित्व की जानकारी हमने इस आर्टिकल Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi में दे रखी है , जिसे पढ़ कर आपको श्रीनिवास रामानुजन के जीवन के बारे में पूरी जानकारी हो जाएगी।
श्रीनिवास रामानुजन के बारे में पूरी जानकारी (Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi)
श्रीनिवास रामानुजन स्कूल से ही गणित विषय में अत्यधिक रुचि रखते थे। गणित में इनकी रुचि के कारण उन्होंने बहुत सारी समस्याओं का हल निकाला और नये सिद्धांतो की खोज करने में सफल हुए। रामानुजन ईश्वर के ऊपर अपार विश्वास एवं श्रद्धा रखते थे, जब उनसे गणित के फार्मूले के बारे में पूछा जाता तो वह कहते इष्ट की देवी नामगिरी देवी की कृपा से उन्हें यह फार्मूला आते थे|
रामानुजन का कहना था कि मेरे लिए गणित के फार्मूले का कोई अर्थ नहीं जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार ना मिलते हो। भारत में इनके जन्मदिन को हर वर्ष राष्ट्रीय गणित दिवस और तमिलनाडु में IT DAY के रूप में मनाया जाता है।
वास्तविक नाम | श्रीनिवास रामानुजन |
पेशा | गणितज्ञ |
जन्म की तारीख | 22 दिसंबर 1887 |
जन्मस्थल | इरोड, मद्रास प्रेसीडेंसी |
मृत्यु | 26 अप्रैल 1920 |
मृत्यु स्थल | कुंभकोणम, मद्रास प्रेसीडेंसी, |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिंदू |
पत्नी | जानकियामल |
श्रीनिवास रामानुजन जी का जन्म और उनका प्रारंभिक जीवन
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को इरोड में हुआ था, जो भारत के दक्षिणी हिस्से का एक छोटा सा गाँव हैं। इसके जन्म के कुछ समय बाद उनका परिवार कुंभकोणम (Kumbakonam) में चला गया जहां उनके पिता एक कपड़े की दुकान में क्लर्क का काम करते थे।
रामानुजन तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे। इस कारण उनके माता-पिता चिंतित रहते थे। फिर रामानुजन को सर्वप्रथम काचिपुरम के एक स्थानीय विद्यालय में प्रवेश दिलवाया गया। परंतु उन्होंने मद्रास के विद्यालयों को पसंद नहीं किया और वहाँ के स्कूल में ना जाने के प्रयास किये।
11 वर्ष की आयु में उन्होंने स्कूल के 2 विद्यार्थियों को गणित में पछाड़ दिया। इसके बाद उन्हें लोनी नामक एक गणित के प्रोफेसर के द्वारा लिखित एडवांस्ड त्रिकोणमिति की पुस्तक दी गई। 13 साल की उम्र में श्रीनिवास ने गणित विषय पर अपनी गहरी पकड़ बना ली। 14 साल की उम्र में उन्हें अनेकों पुरस्कार व प्रमाण पत्र मिले।
रामानुजन अपनी गणित की परीक्षाओं को निर्धारित समय से आधे समय पहले ही पूरा कर देते थे। 1902 में उन्हें त्रिघातीय समीकरणों का हल निकालना सिखाया गया। आगामी वर्षों में उन्होंने चतुर्घातीय समीकरण का हल निकालने के लिए अपना अलग मेथड बना डाला।
1903 में जब वह 15 वर्ष के थे , उन्होंने एक पुस्तक पढ़ी जिसकी वजह से उन्हें गणित की आधारभूत चीजें समझ आई। इस पुस्तक का नाम था “A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics” जिसके आधार पर रामानुजन ने अपने स्वयं के कई रूपों को तैयार करने के लिए आगे बढ़ने से पहले अपने हजारों प्रमेयों के बारे में बताया।
1904 में रामानुजन टाउन हायर सेकंडरी स्कूल से ग्रेजुएट हो गए। उनकी एक्सीलेंस को देखकर विद्यालय के हेडमास्टर ने उन्हें पुरस्कृत भी किया। हेड मास्टर के अनुसार वे इतने बुद्धिमान थे कि अधिकतम अंको से भी अधिक अंक दिए जाने के वे योग्य थे।
आगे की पढ़ाई करने के लिए श्रीनिवास ने कुंभकोणम के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में दाखिला लिया। वे गणित में बहुत बुद्धिमान बन चुके थे और अधिकांश समय में सिर्फ गणित ही पढ़ते रहते थे जिसकी वजह से अन्य विषय में फेल हो गए।
फिर कुछ सालो बाद वह घर से दूर चले गए और महीने भर के लिए राजामुंदरी में रहे। वह मद्रास के पचयप्पा कॉलेज में दाखिल हुए। वहां पर भी वह गणित में हमेशा अव्वल रहे, परंतु अन्य विषयों जैसे अंग्रेजी, संस्कृत आदि में कठिनाईपूर्वक उत्तीर्ण कर पाये।
बिना डिग्री के ही उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और गणित में अपनी व्यक्तिगत रिसर्च शुरू कर दी। उस समय में उनके पास कोई आय का साधन नहीं था जिसकी वजह से वह भयंकर गरीबी में भी अपने रिसर्च पर काम कर रहे थे।
श्रीनिवास रामानुजन का करियर (Srinivasa Ramanujan Carrier)
श्रीनिवास शर्मीले व शांत स्वभाव के व्यक्ति थे। 14 जुलाई 1909 को रामानुजन का विवाह जानकी नाम की लड़की से हुआ था। विवाह के समय रामानुजन की उम्र लगभग 21 वर्ष थी जबकी जानकी की उम्र 10 वर्ष थी यह शादी श्रीनिवास की माता ने तय की थी। विवाह के तीन वर्ष तक जानकी अपने मायके ही रही। 1912 में जानकी, उसकी सास व श्रीनिवास तीनों मद्रास में रहने लगे।
शादी के बाद रामानुजन को हाइड्रोसेल टटेस्टिस हो गया था। इसका इलाज कराने के लिए उनका परिवार खर्चा नहीं उठा सकता था। जनवरी 1910 में एक डॉक्टर ने बिना किसी पैसे के अपनी इच्छा से उनकी सर्जरी की। ठीक होने के बाद रामानुजन जॉब ढूंढने के लिए गए। पैसे कमाने के लिए उन्होंने मद्रास में घर-घर जाकर क्लर्क की नौकरी ढूंढी उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में बच्चों को भी पढ़ाया।
1910 में रामानुजन भारतीय गणित सोसाइटी के संस्थापक रामास्वामी अय्यर से मिले। उन्होंने अय्यर को अपना गणित का कार्य दिखाया जिससे अय्यर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बहुत प्रशंसा भी की।
अय्यर ने रामानुजन को अपने गणित के मित्रों के पास भेज दिया। उन लोगों ने श्रीनिवास के कार्य को देखकर प्रशंसा की। उन्हे नेल्लोर के जिला कलेक्टर तथा भारतीय गणितज्ञ सोसायटी के सेक्रेटरी रामचंद्र राव के पास भेजा राव भी रामानुजन के कार्य से प्रभावित हुए। परंतु उन्होंने उनकी योग्यताओं पर संदेह किया। कुछ परीक्षणों के बाद उनका यह संदेह मिट गया।
राव ने श्रीनिवास को नौकरी तथा वित्तीय सहायता प्रदान की। श्रीनिवास वापस मद्रास आ गए और वहीं से ही राव के खर्चे पर अपनी रिसर्च को फिर से चालू किया।
1913 में नारायण अय्यर रामचंद्र राव आदि लोगों ने रामानुजन के कार्य को ब्रिटिश के ब्रिटिश गणितज्ञ तक पहुंचाने का प्रयास किया। उन्होंने एमजेएम हिल, एचएफ बेकर, ईब्ल्यू होबसन को पत्र भेजा परंतु उन तीनों ने ही रामानुजन के कार्य को अस्वीकार कर दिया।
इसके बाद उन्होंने जी. एच. हार्डी नामक एक अन्य ब्रिटिश गणितज्ञ को पत्र लिखा और अपने पेपर्स भेजे हार्डी ने रामानुजन के कार्य को देखा और बहुत ज्यादा प्रभावित हुए। उस तरह के सिद्धांतों का प्रतिपादन पहले कभी नहीं हुआ था। हार्डी ने रामानुजन के पेपर्स को अन्य साथी गणितज्ञ को भी दिखाया।
हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए एक पत्र लिखा परंतु रामानुजन ने विदेशी भूमि पर जाने के लिए मना कर दिया।
यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास ने रामानुजन को 2 साल के लिए ₹75 प्रति महीने की छात्रवृत्ति प्रदान की। वहीं से ही, वह अपने गणित के कार्य व खोज पत्रों का प्रकाशन करने लगे।
हार्डी ने नेविले नामक एक प्रोफेसर के साथ तालमेल बनाया व रामानुजन को इंग्लैंड लाने के लिए कहा। अबकी बार कहने पर रामानुजन ने स्वीकृति दे दी और इंग्लैंड जाने के लिए तैयार हो गए। 17 मार्च 1914 को रामानुजन पानी की जहाज से इंग्लैंड पहुंचे।
रामानुजन 14 अप्रैल 1914 को लंदन,इंग्लैंड पहुंचे। वहां पर नेविले उनका कार के साथ इंतजार कर रहा था। जहां से वह रामानुजन को अपने घर ले गया। 6 सप्ताह तक ठहरने के बाद, श्रीनिवास नेविले का घर छोड़ कर के अपना आवास ले लिया।
हार्डी और लिटिलवुड नामक रामानुजन के साथी गणितज्ञ ने उसके नोट्स व पेपर चेक किए। दोनों इस परिणाम पर पहुंचे कि वास्तव में श्रीनिवास रामानुजन एक बहुत बुद्धिमान गणितज्ञ हैं। श्रीनिवास ने कैंब्रिज में लगभग 5 वर्ष बिताए। उन्हें मार्च 1916 में बैचलर ऑफ आर्ट्स & रिसर्च डिग्री दी गई।
6 दिसंबर 1917 को उन्हें लंदन मैथमेटिकल सोसायटी में चुना गया था। 2 मई 1918 को उन्हें रॉयल सोसाइटी के एक सदस्य के रूप में चुना गया। वह पहले भारतीय व्यक्ति थे जिन्हें त्रिनिटी कॉलेज के सदस्य के रूप में चुना गया था।
रामानुजन के जीवन में स्वास्थ्य की समस्याएं बहुत रही। जब वह इंग्लैंड में रह रहे थे तब उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया था। हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों से जुड़े होने के कारण वे शाकाहारी भोजन ही ग्रहण करते थे इंग्लैंड में इस तरह का भोजन मिल पाना बहुत कठिन था। 1914 से 1918 के समय में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शुद्ध शाकाहारी भोजन में कमी के कारण उनका स्वास्थ्य खराब हो गया था।
1919 में रामानुजन इंग्लैंड से कुंभकोणम वापस लौट आए। 1920 में मात्र 32 साल की उम्र में कमजोर स्वास्थ्य के कारण कुंभकोणम, मद्रास में उनकी मृत्यु हो गई।
श्रीनिवास की मृत्यु के बाद उनकी विधवा पत्नी जानकी देवी को मद्रास यूनिवर्सिटी ने पेंशन प्रदान की। उन्होंने एक पुत्र भी गोद लिया जिसका नाम डब्लू नारायण था ।
श्रीनिवास रामानुजन का मैथ में कंट्रीब्यूशन
- रामानुजन ने अपने खुद के 3900 थ्योरम और क्मपाइलड विकसित किए थे।
- 1729, 4104, 20683, 39372, 40033 आदि रामानुजन संख्याएं हैं।
- 2014 में इनके जीवन में तमिल फिल्म “रामानुजन का जीवन” बनाई गयी थी।
- 2015 में इन पर एक और फिल्म आई जिसका नाम “THE MAN WHO KNEW INFINITY ” था।
श्रीनिवास रामानुजन की किताबें
रामानुजन जी बहुत गरीब परिवार से आते थे और उनके पास कागज महंगा होने के कारण वे Derivations का रिजल्ट निकलने के लिए स्लेट का इस्तेमाल किया करते थे। उन्होंने कितनी किताबें लिखी पता नही लेकिन उनके मरने के बाद 3 किताब सामने आई।
- पहली Notebook में 351 पेज और 16 systematic chapter और disorganized material था।
- दूसरी नोटबुक में 256 पेज थे जिसमे 21 Chapter और 100 disorganized pages थे।
- तीसरी notebook में मात्र 33 disorganized pages थे।
हार्डी-रामानुजन नंबर 1729 की कहानी
जब महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को इंग्लैंड ले जाया गया तो उनकी तबीयत वहां बहुत ज्यादा खराब हो गई और उसके बाद उनसे मिलने जीएच हार्डी आए और उन्होंने रामानुजन को बताया की वो जिस कैब से आए जिसका नंबर 1729 था और वो बहुत बोरिंग है।
तब जीएच हार्डी की बात काटते हुए रामानुजन ने कहा नही ये नंबर बोरिंग नही बल्कि बहुत दिलचस्प है, उन्होंने बताया की यह सबसे छोटी संख्या है जिसको दो अलग-अलग तरीके से दो cubes के योग के रूप में लिखा जा सकता है। तब से इस नंबर का नाम हार्डी-रामानुजन नंबर कहा जाता है।
1729, 10 और 9 के cubes का योग है- 10 का cube है 1000 और 9 का cube है 729 और इन दोनों को जोड़ने से हमें 1729 प्राप्त होता है।
1729, 12 और 1 के cubes का योग भी है- 12 का cube है 1728 और 1 का घन है 1 और इन दोनों को जोड़ने से हमें 1729 प्राप्त होता है।
श्रीनिवास रामानुजन से जुड़े इंटरेस्टिंग फैक्ट्स
- शुरुआत में रामानुजन सामान्य बच्चों की तरह थे, यहां तक कि यह 3 साल की उम्र उन्होंने बोलना शुरू भी नहीं किया था। स्कूल में भर्ती लेने के बाद पढ़ने पड़ाने का घिसा पिटा अंदाज उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, इसके अलावा इन्होंने प्राइमरी एग्जाम में पूरे जिले में टॉप किया था। 15 साल की उम्र में “ए सिनॉपसिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइट मैथमेटिक्स “ की बहुत पुरानी किताब को पूरी तरह पढ़ लिए थे, जिस किताब में हजारों थियोरम थे। उनकी प्रतिभा का ही फल था कि इन्होंने आगे अपने पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप भी मिली, जिससे इन्हें आगे पढ़ने का अवसर मिला।
- रामानुजन का दिमाग केवल गणित में लगा था, इन्हें दूसरे विषयों कि और बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जिसके कारण उन्होंने पहले गवर्नमेंट कॉलेज और बाद में यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास की स्कॉलरशिप खोनी पड़ी थी। इन सब के बावजूद भी गणित के प्रति इनका लगाव कम नहीं हुआ। साल 1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के जनरल में इनका 17 पन्नों का एक पेपर पब्लिश हुआ था, 1912 में रामानुजन मद्रास पोर्ट में क्लर्क की नौकरी मिली जिसके बाद से इनकी पहचान एक मेधावी गणितज्ञ के रूप में सामने आई।
- रामानुजन उस दौर के विश्व प्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ जीएच हार्डी के काम के बारे में जानने की रूचि रखते थे। 1913 में रामानुजन ने अपने कुछ काम पत्र के माध्यम से हार्डी के पास भेजे थे। शुरुआत में हार्डी ने उनके खातों को काम का न समझते हुए ध्यान नहीं दिए थे, लेकिन जल्द ही उन्होंने उनकी रामानुजन की प्रतिभा को पहचान लिए जिसके बाद हार्डी ने रामानुजन को पहले मद्रास यूनिवर्सिटी और बाद में कैंब्रिज में स्कॉलरशिप दिलाने में सहायता की थी। हार्डी ने रामानुजन को आपने पास कैंब्रिज बुला लिया था। हार्डी के सानिध्य में रामानुजन ने खुद के 20 रिसर्च पेपर पब्लिश करवाए, 1916 में रामानुजन को कैंब्रिज से बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री मिली और 1918 में रामानुजन रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के मेंबर बन गए।
- जब ये भारत लौटे तब भारत की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, इस समय किसी भारतीय को रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन में मेंबर बहुत बड़ी बात थी। रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में रामानुजन का आयु का कोई व्यक्ति सदस्य के रूप में सदस्यता ग्रहण नहीं की थी और ना ही आज तक किसी ने किया है। रॉयल सोसाइटी की मेंबर बनने के बाद भी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले व्यक्ति थे।
- रामानुजन कड़ी मेहनत करने वाले व्यक्ति में से एक थे। ब्रिटेन का ठंडा मौसम उन्हें सूट नहीं कर रहा था जिसके बाद 1917 में इन्हें टीबी की बीमारी हुई थी। स्वास्थ्य में थोड़े बहुत सुधार के बाद 1919 में इनकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो गई जिसके कारण यह भारत लौट आए। 26 अप्रैल 1920 के 32 साल की आयु में इनका देहांत हो गया। बीमारी की हालत में भी इन्होंने गणित से अपना नाता नहीं तोड़ा था। यह बिस्तर पर लेटे वक्त भी थियोरम लिखा करते थे। जब कोई उनसे रेस्ट के बजाये थ्योरम लिखने का कारण पूछा जाता था कि आप आराम के बजाय थ्योरम क्यों लिख रहे हैं तब वे कहा करते थे कि थियोरम सपने में आए थे।
- रामानुजन के बनाए गए ढेर सारे ऐसे थियोरम है जो आज भी किसी पहेली से कम नहीं है। आज तक इनके द्वारा लिखे गए थियोरम को बड़े से बड़े गणितज्ञ भी नहीं सुलझा पाए हैं। उनका एक पुराना रजिस्टर 1976 कॉलेज की लाइब्रेरी में मिला था जिसमें कई फार्मूले थे। इस रजिस्टर में लिखे हुए थियोरम आज तक नहीं सुलझाया नहीं जा सका है। इस रजिस्टर को रामानुजन की नोटबुक के नाम से जाना जाता है।
- रामानुजन की बायोग्राफी द मैन हू न्यू इंफिनिटी 1991 में पब्लिश हुई । इसी नाम से रामानुजन पर एक फिल्म भी बनी है। इस फिल्म में एक्टर देव पटेल ने रामानुजन का रोल प्ले किया था।
- रामानुजन आज भी ना सिर्फ भारतीय बल्कि विदेशी गणितज्ञों के लिए इंस्पिरेशनल है।
Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi – FAQ’s
-
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म कहां हुआ था?
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के मद्रास में हुआ था।
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श्रीनिवास रामानुजन का जन्म कब हुआ था?
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को हुआ था।
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श्रीनिवास रामानुजन का क्या योगदान है?
श्रीनिवास रामानुजन के योगदान के बदौलत ही आज के समय में कैंसर की दवाइयां दी जाती है। इसके अलावा अनेक तरह के गणित के शोध किए गए हैं।
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श्रीनिवास रामानुजन की पत्नी का क्या नाम था?
श्रीनिवास रामानुजन की पत्नी का नाम जानकी था।
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रामानुजन की मृत्यु कब हुई?
श्रीनिवास रामानुजन की मृत्यु मात्र 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 को हुई थी।
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निष्कर्ष
दोस्तों Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi, इस आर्टिकल को पढ़कर आपको श्रीनिवास रामानुजन के जीवन के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। रामानुजन
के जीवन के बारे में जानकर आपको कैसा लगा कमेंट करके बताएं। इस तरह की और बायोग्राफी पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहे।
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