Aryabhatta Biography in Hindi: आप ने तो आर्यभट्ट का नाम अवश्य ही सुना होगा। अगर आप ने इनका नाम पहले नहीं सुना है या फिर आपको इनके बारे में कुछ पता नहीं है। तो कोई बात नही, हम बताते है , आर्यभट्ट प्राचीन भारत के सबसे महान गणितज्ञ, ज्योतिषविद और खगोलशास्त्री थे। विज्ञान और गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है। उन्होंने गणित और खगोल विज्ञान से सम्बंधित महत्वपूर्ण नियम प्रतिपादित किये, जिसके आधार पर आज भी वैज्ञानिक अपनी नई खोज करते हैं।
उन्होंने उस वक्त ब्रह्माण्ड के रहस्यों को दुनिया के सामने रखा, जब बाकी दुनिया ठीक से गिनती करना भी नहीं सीख पाया था।आर्यभट्ट के प्रयोगों ने भारतीय astronomers के लिए अपनी गणनाओं में सुधार की नींव रखी। cosine और inverse sine की उनकी अवधारणाओं ने त्रिकोणमिति को जन्म दिया । ऐसे में अगर आप भी विज्ञान और गणित में रुचि रखते हैं। तो आज के इस आर्टिकल Aryabhatta Biography in Hindi में हम इनके जीवन के बारे में विस्तार से बताएंगे।
आर्यभट्ट के बारे में पूरी जानकारी (Aryabhatta Biography in Hindi)
आर्यभट्ट एक भारतीय गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और भौतिक विज्ञानी थे, जो 5वीं शताब्दी के अंत में रहते थे।
उन्हें भारतीय गणित और खगोल विज्ञान के शास्त्रीय युग का पहला प्रमुख गणितज्ञ-खगोलशास्त्री माना जाता है। उनके कार्यों में आर्यभट्टीय और आर्य-सिद्धांत शामिल हैं।
उनके द्वारा की गयी खोज आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। पुरे विश्व में कॉपरनिकस से लगभग 1 हज़ार साल पहले ही आर्यभट्ट ने यह खोज कर ली थी कि पृथ्वी गोल है और वह सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती हैं। आर्यभट्ट उन पहले व्यक्तियों में से थे जिन्होंने बीजगणित का प्रयोग किया ।
वास्तविक नाम | आर्यभट्ट |
पेशा | गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और भौतिक विज्ञानी |
जन्म की तारीख | 476 AD |
जन्मस्थल | कुसुमापुरा ( अभी पटना, बिहार ) |
मृत्यु | 550 AD |
मृत्यु स्थल | पाटलिपुत्र |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिंदू |
पत्नी | N/A |
आर्यभट्ट का पूरा नाम (Full Name of Aryabhatta)
हममे से बहुत से लोग आर्यभट्ट को ‘आर्यभट्ट्ट’ नाम से भी संबोधित करते हैं परन्तु उनका सही नाम आर्यभट्ट था। सबसे पहले डॉ. भाऊ दाजी ने यह स्पष्ट किया था कि उनका वास्तविक नाम आर्यभट्ट है, नाकि आर्यभट्ट्ट। आर्यभट्ट को आर्यभट्ट्ट लिखने के पीछे कुछ विद्वानों का तर्क है कि आर्यभट्ट ब्राह्मण थे, इसका मतलब भट्ट शब्द का उपयोग किया जाना चाहिए।
परंतु कुछ विद्वान मानते है कि आर्यभट्ट के नाम का ‘भट’ शब्द ‘भाट’ से आया है। जिसका मतलब होता हैं, योद्धा! क्योंकि आर्यभट्ट ने एक योद्धा की ही तरह सदियों से चले आ रहे रूढ़ीवादी विचारों का मुकाबला किया। गौरतलब है कि उनकें ग्रंथ आर्यभट्टीय के टीकाकारों तथा अन्य पूर्ववर्ती ज्योतिषियों ने उन्हें ‘आर्यभट्ट’ नाम से ही संबोधित किया है।
आर्यभट्ट का जन्म और उनका प्रारंभिक जीवन
आर्यभट्ट के जन्म के संबंध में कोई ठोस प्रमाण तो उपलब्ध नही हैं, परन्तु कहा जाता हैं कि आर्यभट्ट का जन्म 476 में पाटलिपुत्र में हुआ। वह एक खगोल विज्ञानी और सबसे पहले भारतीय गणितज्ञ थे। जिनका काम और इतिहास आधुनिक विद्वानों के लिए उपलब्ध हैं।
हिन्दू और बौध परम्पराओं के साथ-साथ सातवीं शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ भाष्कर ने कुसुमपुरा की पहचान पाटलिपुत्र के रूप में की है। यहाँ पर अध्ययन का एक महान केन्द्र, नालन्दा विश्वविद्यालय था और संभव है कि आर्यभट्ट इससे जुड़े रहे हों।
आर्यभट्ट के महान कार्य
आर्यभट्ट्ट ने अपने जीवनकाल में बहुत से खोज किए। जिसके बारे में नीचे हमने आपको विस्तार पूर्वक बताया है –
आर्यभट्ट की खोजों में शामिल हैं:
- त्रिकोणमितीय कार्य
- पाई का मान
- स्थानीय मान प्रणाली
- बीजीय सर्वसमिकाएँ
- गति की सापेक्षता
- शून्य का आविष्कार
आर्यभट्ट का खगोलशास्त्री के रूप में योगदान
आर्यभट्ट के खगोलशास्त्र के सिद्धांतों को सामूहिक रूप से Audayaka System कहते हैं। उनके बाद की कुछ रचनाओं में पृथ्वी के परिक्रमा की बात कही गयी हैं और उनका यह भी मानना था कि पृथ्वी की कक्षा गोलाकार नहीं, बल्कि elliptical हैं।
1. सौरमंडल की गतिशीलता
आर्यभट्ट ने यह तथ्य स्थापित किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर रूप से घुमती रहती हैं और यहीं कारण हैं कि आकाश में तारों की स्थिति बदलती रहती हैं। यह तथ्य इसके बिल्कुल विपरीत हैं कि आकाश घूमता हैं। इसका वर्णन उन्होंने आर्यभट्टीय में भी किया हैं।
2. आर्यभट्ट सूर्यग्रहण
पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा करती हैं और चन्द्रमा अपने अक्ष पर घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा के साथ सूर्य की भी परिक्रमा करता हैं और इस दौरान जब पृथ्वी और सूर्य के बीच जब चन्द्रमा आ जाता हैं तो चंद्रमा के बीच में आने से सूर्य का उतना हिस्सा छुप जाता हैं और वह हमें काला या प्रकाशहीन दिखाई देता हैं और यह घटना सूर्यग्रहण कहलाती हैं।
3. आर्यभट्ट चंद्रग्रहण
चन्द्रमा अपने अक्ष पर घूमते हुए पृथ्वी की परिक्रमा के साथ सूर्य की भी परिक्रमा करता हैं और इस दौरान सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है। तो पृथ्वी की परछाई चन्द्रमा पर पड़ती हैं और वह सूर्य प्रकाश प्राप्त नहीं कर पाता हैं, इससे यह घटना चंद्रग्रहण कहलाती हैं। पृथ्वी की छाया जितनी बड़ी होती है, ग्रहण भी उतना ही बड़ा होता हैं।
4. कक्षाओं का वास्तविक समय
आर्यभट्ट ने पृथ्वी की एक परिक्रमा का बिल्कुल उचित समय ज्ञात किया। यह अपने अक्ष पर घूमते हुए सूर्य की परिक्रमा प्रतिदिन 24 घंटों में नहीं, बल्कि 23 घंटें, 56 मिनिट और 1 सेकेण्ड में पूरी कर लेती है। इस प्रकार हमारे 1 साल में 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनिट और 30 सेकेंड होते हैं।
आर्यभट्ट के गणित और खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान
- आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि (circumference) की लंबाई 39,968.05 किलोमीटर बताई थी जो असल लंबाई (40,075.01 किलोमीटर) से सिर्फ 0.2 प्रतीशत कम है।
- आर्यभट्ट ने वायुमंडल की ऊँचाई 80 किलोमीटर तक बताई थी। असल में वायुमंडल की ऊँचाई 1600 किलमीटर से भी ज्यादा है। पर इसका 99 प्रतीशत हिस्सा 80 किलोमीटर की सीमा तक ही सीमित है।
- आर्यभट्ट ने सूर्य से ग्रहों की दूरी के बारे में बताया है। वह वर्तमान माप से मिलता-जुलता है। आज पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर मानी जाती है। इसे 1 AU (Astronomical unit) कहा जाता है। आर्यभट्ट्ट के मान और वर्तमान मान इस तरह हैं-
- ग्रह – आर्यभट्ट्ट का मान वर्तमान मान
बुध 0.375AU – 0.387 AU
शुक्र 0.725 AU 0.723 AU
मंगल 1.538 AU 1.523 AU
गुरु 4.16 AU 4.20 AU
शनि 9:41 AU 9.54 AU
- आर्यभट्ट ने तारों से सापेक्ष पृथ्वी के घूमने की गति को माप कर बताया था कि एक दिन की लंबाई 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सैकेंड होती है जो असल से सिर्फ 0.86 सैकेंड कम है। आर्यभट्ट से पहले भी कई ग्रीक, युनानी और भारतीय वैज्ञानिकों ने एक दिन के समय की लंबाई को बताया था पर वो आर्यभट्ट की गणना जितनी सटीक नही थी।
- आर्यभट्ट के अनुसार एक साल की लंबाई 365.25868 दिन के बराबर होती है जो कि आधुनिक गणना 365.25636 के लगभग बराबर है।
- चांद के पृथ्वी के ईर्द गिर्द चक्कर लगाने की अवधि को आर्यभट्ट ने 27.32167 दिन के बराबर बताया था। जो कि आधुनिक गणना 27.32166 के लगभग बराबर है।
- अंकों को चिन्हों द्वारा लिखना शुरू किया दोस्तो अक्सर आप ने सुना होगा कि आर्यभट्ट ने जीरो की खोज की थी पर आपकी यह जानकारी गलत है। असल में उन्होंने गणनाओं को विशेष चिन्हों द्वारा लिखने की शुरूआत की थी। उनसे पहले किसी लेख में गणनाओं को शब्दों में लिखा जाता था (जैसे कि एक, दो, तीन, गयारा, पंद्रा, बीस आदि) पर उन्होंने गणनाओं को आधुनिक नंबर सिस्टम में लिखना शुरू किया ( जैसे कि 1, 2, 3, 11, 15 20 etc.) । (यहां पर ध्यान दें कि 1,2,3 अंग्रेज़ी चिन्ह है जबकि आर्यभट्ट ने किन्हीं और चिन्हों का प्रयोग किया था जिनके बारे में अब पता नही ।)
- आर्यभट्ट ने केवल यह ही नही बताया कि सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण क्यों लगते है बल्कि ग्रहण लगने का समय निकलने का फार्मूला भी बताया। उन्होंने ग्रहण कितनी देर तक रहेगा इस बात का पता करने का भी फार्मूला दिया था।
- आर्यभट्ट ने पाई की वेल्यू दशमलव के चार अंकों (3.1416) तक सही बताई थी।
- आर्यभट्ट ने ही त्रिकोणमिती (Trigonometry) के Sin और Cosine की खोज की थी। आर्यभट्ट ने इन्हें ज्या’ और ‘कोज्या’ कहा है। Cosine कोज्या का ही बिगड़ा हुआ रूप है। इस का मतलब है आज पूरी दुनिया में जो त्रिकोणमिति पढ़ाया जाता है, वास्तविकता में उसकी खोज आर्यभट्ट ने की थी।
- आर्यभट्ट ने ब्रम्हांड को अनादि अनंत माना। भारतीय दर्शन के अनुसार अग्नि, जल, वायु पृथ्वी और आकाश इन पांच तत्वों के मेल से इस सृष्टी का सृजन हुआ है। परन्तु आर्यभट्ट ने आकाश को तत्व नही माना।
- आर्यभट्ट ने उस समय की प्रचलित अवधारणा को रद्द कर दिया कि पृथ्वी इस ब्रह्मांड के केंद्र में है। आर्यभट्ट के अनुसार सूर्य सौर मंडल के केंद्र में स्थित है और पृथ्वी समेत बाकी ग्रह उसकी परिक्रमा करते हैं।
आर्यभट्ट का सिद्धांत
आर्यभट्ट की इस रचना में निम्नलिखित खगोलीय यंत्रो और उपकरणों का उल्लेख मिलता हैं –
1. छाया यन्त्र (Shadow Instrument)
2. कोण मापी उपकरण (Angle Measuring Device)
3. धनुर यंत्र / चक्र यंत्र (Semi Circular / Circular Instrument)
4. शंकु यन्त्र (Gnomon)
5. छत्र यन्त्र (Umbrella Shaped Device)
6. जल घडी (Water Clock)
7. बेलनाकार यस्ती यन्त्र (Cylindrical Stick)
आर्यभट्ट का ग्रंथ
आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीय ग्रंथ की रचना की जिसमें उनके खोज कार्यों का वर्णन किया गया है। हालांकि, इस ग्रंथ का नाम उनके शिष्यों व अन्य लोगों ने आर्यभट्टीय रखा था। उन्होंने खुद ने इस ग्रंथ का नाम कहीं उल्लेखित नहीं किया है।
ग्रंथ को छंद / पद्य तरीके में लिखा गया है जो इसे पढ़ने में थोड़ा-सा कठिन बनाता है। इसमें कुल 108 छंद / पद्य हैं तथा 13 अन्य परिचयात्मक (introductory) छंद है।
शुरुआती 13 छंदों में आर्यभट्ट्ट ने अपने जीवन (Aryabhatta Biography) तथा ग्रंथ के बारे में बताया है। ग्रंथ में कुल चार अध्याय हैं जिन्हें पद कहा गया है। इन अध्यायों को हमने एक सारणी के माध्यम से समझाने की कोशिश की है जो आप नीचे देख सकते हैं –
अध्याय का नाम | छंद की संख्या | अध्याय सामग्री |
गीतिकापद | 13 | समय के मापन की इकाइयां – कल्प, मनवंत्र, युग, ज्या की सारणी। |
गणितपद | 33 | मापन, अंकगणित, ज्यामिति, शंकु छाया, साधारण, द्विघाती तथा अनिश्चित समीकरणों के हल। |
कलाक्रियापद | 25 | ग्रहों की स्थिति, मापन व उनकी इकाइयां, क्षया तिथि, 7 दिनों का सप्ताह तथा सप्ताह के 7 दिन इत्यादि। |
गोलापद | 50 | त्रिकोणमिति, गोला, पृथ्वी की आकृति, भूमध्य रेखा, दिन रात होने का कारण, ग्रहण व नक्षत्र। |
आर्यभट्ट को महासम्मान
भारत के इस महान सपूत को भारत ने ही नही बल्कि पूरी दुनिया ने भरपूर सम्मान दिया है। भारत ने अपने पहले उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखा जिसे 19 अप्रैल 1975 को अंतरिक्ष में छोड़ा गया। भारत दुनिया पहला ऐसा देश है जिसने अपने पहले उपग्रह को किसी काल्पनिक देवी-देवता का नाम नही दिया, बल्कि अपने एक महान गणितज्ञ का नाम दिया।
साल 1976 में अर्न्तराष्ट्रीय संस्था यूनेस्को ने आर्यभट्ट्ट की 1500वीं जयंती मनाई थी। चन्द्रमा पर उपस्थित एक बड़ी दरार (गड्डे) का नाम आर्यभट्ट रखा गया है। ISRO द्वारा वायुमंडन की समताप मंडल परत में खोजे गए जीवाणुओं में से एक प्रजाति का नाम ‘बैसिलस आर्यभट्ट’ रखा गया है। नैनीताल के निकट स्थित एक वैज्ञानिक संस्थान का नाम आर्यभट्ट के सम्मान में ‘आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान’ रखा गया है।
आर्यभट्ट के बारे में इंटरेस्टिंग फैक्ट्स
1. हम सब जो त्रिकोणमिति पढ़ते है उसकी खोज आर्यभट्ट ने ही थी ।
2. आर्यभट्ट ने दशगीतिका भाग में पहले पांच ग्रहों की गणना एवं हिन्दू कालगणना और त्रिकोणमिति की चर्चा की है।
3. आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धांत की भी रचना की।
4. शून्य की खोज करने वाले महान गणितज्ञ आर्यभट्ट जी का मानना था कि सौर मंडल के केन्द्र में स्थित है, पृथ्वी समेत अन्य ग्रह इसके परिक्रमा करते हैं।
5. आर्यभट्ट ने बिहार के तरेगाना क्षेत्र में सूर्य मंदिर में एक निरिक्षण शाला की स्थापना की ।
6. महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने पाई का मान (3.1416) को दशमलव के चार अंकों तक ही सही बताया था।
7. इनके लोकप्रिय ग्रन्थ आर्यभट्टीय को आर्यभट्टीय नाम इनके 100 साल बाद भारतीय गणितज्ञ भास्कर ने दिया था ।
Aryabhatta Biography in Hindi -FAQ’s
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आर्यभट्ट का जन्म कब और कहां हुआ था?
आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी को पाटलिपुत्र में हुआ था। पाटलिपुत्र शहर वर्तमान पटना (बिहार) की जगह पर था। यहीं पर ही आर्यभट्ट ने शिक्षा ग्रहण की तथा अपने खोज कार्य संपन्न किए।
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आर्यभट्ट कौन थे?
आर्यभट्ट एक महान प्राचीन भारतीय गणितज्ञ तथा खगोल विज्ञानी थे ।
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आर्यभट्ट ने किसकी खोज की थी?
आर्यभट्ट ने शून्य, ज्या कोज्या, साधारण समीकरणों के हल, बीजगणित के सूत्र, त्रिकोणमिति व इसके फलन, ग्रहों की गति, नक्षत्र, ग्रहण, दिन रात होने में लगा समय, सप्ताह के 7 दिन, 1 वर्ष होने में लगा समय, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूर्णन करना, इत्यादि की खोज की थी।
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आर्यभट्ट की मुख्य रचनाएं क्या थी?
आर्यभट्ट ने एक ग्रंथ की रचना की थी जिसका नाम आर्यभट्टीय
था। इस ग्रंथ में उन्होंने गणित खगोल विज्ञान का ज्ञान दिया है। उन्होंने
आर्य सिद्धांत की भी रचना की थी जो खो गए हैं तथा वर्तमान समय में
जीवंत नहीं है।
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निष्कर्ष
दोस्तों आर्यभट्ट्ट के जीवन के बारे में आपको Aryabhatta biography in Hindi में सब कुछ पता चल गया होगा। आर्यभट्ट्ट जैसे महान गणितज्ञ के बारे में जानकर आपको कैसा लगा, कमेंट करके बताएं। इस तरह के महान लोगों के बारे में जानने के लिए हमारे ब्लॉग से जुड़े रहें।